योग का अर्थ || Yoga Kya Hai || ज्ञान मुद्रा

अन्य पढ़ें
यहाँ आप पाएँगी देसी और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के बारे मे ज्ञान,हर्बल औषधियाँ तथा और भी बहुत कुछ,Herbs,Herbal Remedies
योग का अर्थ || Yoga Kya Hai || ज्ञान मुद्रा
अन्य पढ़ें
एक महीने में मोटापा घटायें ||
अन्य पढ़ें
![]() |
Photo by Valeria Boltneva from Pexels |
![]() |
Photo by Pixabay from Pexels |
![]() |
pexels.com |
![]() |
Photo by Alisha Mishra from Pexels |
शिवपंचाक्षरस्तोत्रम् || Cure For All Diseases
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय ||
सर्पों कि माला धारण करने बाले, तीन नेत्रों बाले,
शरीर पर भस्म रमाने बाले महेश्वर |
नित्य शुद्ध दिशाओं के वस्त्र धारण करने बाले,
न कार स्वरूप शिव को नमस्कार है ||
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ||
गंगा जी को धारण करने बाले,
चंदन से अलंकृत,
नंन्दी जी के पूजित,प्रमथनाथ महेश्वर |मंदार जैसे कई फूलों से पूजित म स्वरूप शिव को नमस्कार है |
शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदाय
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ||
जो सूरज के समान हैं और माँ गौरी जी के मुख कमल को खुशी प्रदान करने बाले हैं,राजा दक्ष के घमन्ड को दूर करने बाले,कण्ठ में बिष धारण करने बाले,जिन का प्रतीक के रूप में बैल है, शि स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है |
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चित शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ||
वशिष्ठ ,अगस्तय,गौतम आदि मुनियों और देवताओं के पूजित,ब्रहमाँड के मुकुट,जिन कि चंद्रमा,सूरज और अग्नि तीन आँखें हैं ,व स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है |
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय ||
.
यज्ञ स्वरूप ,जटाओं को धारण करने बाले ,जिन के हाथों में त्रिशूल है ,जो सनातन हैं |जो दिव्य हैं ,तेजोमय हैं और चारों दिशाएँ जिन के वस्त्र हैं ,य स्वरूप उन भगवान शिव को नमस्कार है |
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
.
इस पंचाक्षर का पाठ जो शिव के समीप करते हैं ,वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और शिव के साथ आन्नदित रहेंगे ।
अन्य पढ़ें
जटरोफा का पौधा | जटरोफा करकस
रासायनिक नाम: - जटरोफा करकस
स्थानीय नाम: - जटरोफा, फिजिक नट, पर्जिंग नट, पुलजा, ज्रतोफा, दंती, कातरी
जटरोफा की पहचान कैसे करें
1. जटरोफा एक छोटा पेड़ है और 20-30 फीट की ऊंचाई तक हो सकता है।
2. जटरोफा की पत्तियाँ हरे से पीले रंग की होती हैं।
3. जटरोफा के पेड़ में नर और मादा फूल समान फूलों के समूह के बीच होते हैं।
4. जटरोफा का पेड़ गर्मी के मौसम में अपने पत्ते गिरा देता है।
5. जटरोफा के तने को काटने पर चिपचिपा लेटेक्स निकलता है।
6. जटरोफा के पेड़ के बीज काले रंग के होते हैं।
जटरोफा के उपयोग
1. जटरोफा सीड ऑयल का उपयोग साबुन, चिकनाई, कीटनाशक, वार्निश और बायोडीजल आदि बनाने के लिए किया जाता है।
2. जेट्रोफा तेल खली को उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसमें पोटेशियम, फास्फोरस और नाइट्रोजन होता है।
3. जटरोफा की पत्तियां एंटी एनीमिक, एंटी प्लास्मोडियल, एंटी कैंसर, एंटी एचआईवी और एंटीमाइक्रोबियल हैं।
4. जटरोफा में बीटा ब्लॉकर्स होते हैं।
5. जटरोफा के पेड़ से निकाले गए डाई का इस्तेमाल कपड़े, लाइन, धागे और जाल आदि के लिए रंग भरने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है।
6. जटरोफा के पत्तों का उपयोग रक्तचाप को कम करने, रक्त शर्करा को सामान्य करने, यूरिक एसिड को ठीक करने और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए किया जाता है। 7. त्वचा रोगों के लिए जेट्रोफा का उपयोग किया जा सकता है।
8. जटरोफा का उपयोग हेज के रूप में किया जाता है।
Suptvajrasana Steps benefits and precautions || सुप्तवज्रासन तरीका लाभ और सावधानियाँ
![]() |
Photo by Elly Fairytale from Pexels |
सुप्तवज्रासन के बारे में हिन्दी में पढ़ें
सुप्तवज्रासन का अर्थ | सुप्तवज्रासन का अन्य नाम
सूप्त का अर्थ है सोना या बिछाना
वज्र का अर्थ है वज्र (भगवान इंद्र का हथियार)
आसन का अर्थ है बैठने का तरीका
तो सुप्तवज्रासन का मतलब एक आसन है जो वज्र के समान होता है और लेटने की स्थिति में किया जाता है।सुप्तवज्रासन का दूसरा नाम द थंडरबोल्ट आसन, रेकलाइन थंडरबोल्ट आसन और स्लीपिंग थंडरबोल्ट आसन है
Suptvajrasana / Suptvajrasana के साइड इफेक्ट्स करते समय बरती जाने वाली सावधानियां
सुप्तवज्रासन करते समय बरती जाने वाली सावधानियां इस प्रकार हैं: -
1. पीठ के निचले हिस्से में दर्द वाले लोगों को सुप्तवज्रासन करने से बचना चाहिए।
2. सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस और ऑस्टियो एस्ट्राइटिस से पीडि़त लोगों को सुप्तवज्रासन करने से बचना चाहिए।
3. डिस्क की समस्या से ग्रस्त लोगों को सुप्तवज्रासन करने से बचना चाहिए।
4. गर्भवती महिलाओं को सुप्तवज्रासन नहीं करना चाहिए। 5.सुप्तवज्रासन भोजन के बाद या खाली पेट 2-3hrs में करना चाहिए।
6. कठिन सतह पर नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्तवज्रासन करने से पहले की तैयारी
सुप्तवज्रासन का अभ्यास करने से पहले व्यक्ति को निम्नलिखित योगासनों का अभ्यास करना चाहिए: -
1. वज्रासन
2. मत्स्यासन
सुप्तवज्रासन करने के चरण
1. वज्रासन में बैठें।
2. अपनी दोनों कोहनी के सहारे पीछे झुकें।
3. धीरे-धीरे सिर को फर्श पर वापस लाएं।
4. अपनी पीठ के बल फर्श पर लेट जाएं।
5. अपनी हथेलियों को अपनी जांघों पर रखें।
6. अब अपने सिर को अपनी पीठ पर एक चाप बनाने के लिए बढ़ाएं।
7. सामान्य रूप से सांस लें।
8. चरण 7 से 1 तक उल्टा क्रम में करेम ताकि मुद्रा से मुक्ति हो सके।
सुतवज्रासन के लाभ
1. सुतवज्रासन रीढ़ की नसों को टोन करता है।
2. सुप्तवज्रासन से लचीलापन बढ़ता है।
3. सुप्तवज्रासन फेफड़ों के ऑक्सीजन सेवन को बढ़ाता है।
4. सुप्तवज्रासन कब्ज से राहत देता है और पेट की कई बीमारियों में मदद करता है।
5. सुप्तवज्रासन हृदय, गुर्दे और फेफड़ों आदि जैसे आंतरिक अंगों को मालिश देता है।
6. सुप्तवज्रासन से यौन ऊर्जा बढ़ती है।
7. सुप्तवज्रासन अल्सर और एसिडिटी से बचाने में मदद करता है।
8. सुप्तवज्रासन पैरों की मेहराब को मजबूत करता है।
सुप्तवज्रासन करने का सर्वोत्तम समय
इस आसन को सुबह के शुरुआती घंटों और सूर्यास्त से 10 मिनट पहले खाली पेट में करना चाहिए।
सुप्तवज्रासन की अवधि
सुप्तवज्रासन का अभ्यास 30 सेकंड से 15-30 मिनट तक किया जा सकता है। लेकिन समय को धीरे धीरे बढ़ाएँ |
अन्य पढ़ें
cure for all disease || मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् || Mritasanjeevani Stotram
![]() |
Photo by Sandeep Singh from Pexels |
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्
एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं ।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥1॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पहला श्लोक
गौरी पति,मृत्यु को जीतने वाले भगवान शंकर कि अराधना कर के, मृतसंजीवनी नाम के कवच का नित्य पाठ करना चाहिए॥1॥
सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं । महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ 2॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में दूसरा श्लोक
महादेव शंकर जी का मृतसञ्जीवन नाम का कवच सार का भी सार,पुण्य देने वाला ,गुप्त से भी गुप्त और शुभ फल प्रदान करने वाला है ॥2॥
समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं । शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥3॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तीसरा श्लोक
इस शुभ कवच को एकाग्रचित होकर सुनना चाहिए | इस दिव्य कवच को सुनने मात्र से रहस्य उजागर होते हैं ॥3॥
वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः । मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥4॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चौथा श्लोक
जो अभय दान देने वाले हैं,सभी देवताओं द्वारा पूजे जाने वाले हैं वह मृत्यु पर जय करने वाले महादेव पूर्व दिशा में मेरी रक्षा करें ॥4॥
दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः ।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥5॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पाँचवाँ श्लोक
शक्ति को धारण करने वाले ,तीन मुखों वाले,छ: भुजाओं वाले प्रभु | अग्निरूपी भगवान शंकर आग्नेय कोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥5॥
अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः । यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ॥6॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में छठा श्लोक
अट्ठारह भुजाओं वाले, हाथ में दण्ड धारण कर सृष्टि को अभय करने वाले, यमरुपी महादेव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥6॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः । रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु ॥7॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सातवाँ श्लोक
हाथ में खड्ग धारण करने वाले , अभय देने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों द्वारा पूजे जाने वाले ,रक्षा रूप महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥7॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः । वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु ॥8॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में आठवाँ श्लोक
हाथ में अभय मुद्रा और पाश धारण करने वाले, सभी रत्नों से सुशोभित , वरुण स्वरूप महादेव पश्चिम- दिशा में मेरी सदा रक्षा करें ॥8॥
गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः । वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥9॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में नवमाँ श्लोक
हाथों में गदा और अभय मुद्रा धारण करने वाले, प्राणों कि रक्षा करने वाले, सर्वदा गतिशील | वायुस्वरूप शंकर वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें ॥9॥
शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः । सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥10॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में दसवाँ श्लोक
हाथों में शंख और अभय मुद्रा धारण करने वाले | कण कण में व्याप्त भगवान् शंकर सभी दिशाओं में मेरी रक्षा करें ॥10॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः । ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥11॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में ग्यारहवाँ श्लोक
हाथों में शूल और अभय मुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप शंकर ईशान कोण में मेरी रक्षा करें ॥11॥
ऊर्ध्वभागे ब्रह्म:रूपी विश्वात्माऽधः सदावतु । शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥12॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में वारहवाँ श्लोक
ब्रह्मरूपी शंकर भगवान मेरी ऊर्ध्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप भगवान अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिर की और चादँ को ललाट मैं धारण करने वाले शंकर मेरे ललाट की रक्षा करें ॥12॥
भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु । भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥13॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तेरहवाँ श्लोक
सर्व लोकेश,त्रिनेत्र शंकर मेरे नेत्रों और भौहों के बीच कि सदा रक्षा करें,गिरीश मेरी दोनों भौंहों की रक्षा एवं महेश्वर मेरे दोनों कानों कि रक्षा करें ॥13॥
नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः । जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥14॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चौदहवाँ श्लोक
मेरी नासिका कि महादेव तथा वृषभध्वज मेरे दोनों होठों की रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जीभ कि तथा गिरिश (पर्वत पर रहने वाले ) मेरे दाँतों की रक्षा करें ॥14॥
मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः । पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥15॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पँद्रहवाँ श्लोक
मृत्यु को जीतने वाले शंकर मेरे मुँह की एवं नागों कि माला धारण करने वाले भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूली मेरे हृदय की सदा रक्षा करें ॥15॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः । नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥16॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सोलहवाँ श्लोक
पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो कि और जगत के ईश्वर मेरे उदर की सदा रक्षा करें । विरूपाक्ष मेरे नाभि क्षेत्र कि और पार्वती पति मेरेव पार्श्व भाग की सदा रक्षा करें ॥16॥
कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः । गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥17॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सतरहवाँ श्लोक
गिरीश मेरे नित्म्बों कि तथा प्रमथाधिप मेरे पीछे के भाग कि सदा रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुदा भाग कि और भैरव मेरी दोनों जंघाओं कि रक्षा करें ॥17॥
जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका । पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥18॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में अठारहवाँ श्लोक
जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरीे दोनों जँघाओं कि | सभी लोकों में वंदित सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की सदा रक्षा करें ॥18॥
गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम । मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥19॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में उन्नीसवाँ श्लोक
गिरीश मेरी अर्धाँगिनी कि तथा भव मेरे पुत्रों कि सदा रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरी आयु कि गणनायक मेरे चित्त कि सदा रक्षा करें ॥19॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः। एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥20॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में वीसवाँ श्लोक
कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगो की रक्षा करें । यह दिव्य कवच देवताओं के लिये भी दुर्लभ है॥20॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् । सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥21॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में इक्कीसवाँ श्लोक
मृतसञ्जीवन नामक इस कवच की कीर्ति महादेव जी ने गाई है । इस कवच के सहस्त्र वार जाप को पुरश्चरण कहा गया है ॥21॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः । सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥22॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में बाईसवाँ श्लोक
जो इस कवच को नित्य ध्यानपूर्वक पढ़ता या सुनता है, उसे अकाल मृत्यु नहीं आती और वह पूरी आयु प्राप्त करता है ॥ 22॥
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ । आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥23॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तेईसवाँ श्लोक
इस कवच का पाठ करने वाला यदि मरणासन्न व्यक्ति को भी छू देता है तो वह भी जीवित हो उठता है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥23॥
कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा । अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥24॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में चोबीसवाँ श्लोक
यह मृतसञ्जीवन कवच काल के हाथ में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर देता है | वह अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त कर मानवों में उत्तम होता है ॥24॥
युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं । युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥25॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में पच्चीसवाँ श्लोक
युद्ध आरम्भ होने से पहले जो अट्ठाइस वार इस कवच का पाठ करता है वह शत्रु के लिए अदृश्य हो जाता है अर्थात शत्रु उसे मार नहीं सकता ॥25॥
न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै । विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥26॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में छब्बीसवाँ श्लोक
ब्रह्मास्त्र जैसे शस्त्र भी उस का कुछ बिगाड़ नहीं सकते और यूद्ध में सदा उस की जीत होती है॥26॥
प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं । अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥27॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में सत्ताईसवाँ श्लोक
जो सुबह उठकर इस कल्याणकारी कवच का सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय्य सुख प्राप्त होते हैं ॥27॥
सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः । अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥28॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में अट्ठाईसवाँ श्लोक
वह सभी रोगों से मुक्त हो कर ,अजर अमर हो एक अट्ठारह साल के युवा कि तरह हो जाता है ॥28॥
विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् । तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥29॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में उन्नतीसवाँ श्लोक
वह सभी लोकों में घूमता हुआ दुलर्भ भोगों को प्राप्त करता है | इसी कारण इस कवच को मृतसंजीवनी कहा गया है ॥29॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥30॥
मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् हिन्दी में तीसवाँ श्लोक
मृतसंजीवनी नाम का यह कवच देवतओं के लिय भी दुर्लभ है ॥30॥
॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥
अन्य पढ़ें
Surya Namaskaar and its benefits || सूर्य नमस्कार और इसके फायदे
![]() |
Photo by Elly Fairytale from Pexels |
सूर्य नमस्कार और इसके फायदे | सूर्य नमस्कार की उत्पत्ति
सूर्य नमस्कार का अर्थ
सूर्य का अर्थ है भगवान सूर्य
नमस्कार प्रणाम या प्रशंसा के लिए उपयोग किया गया है,
तो सूर्य नमस्कार का अर्थ संयुक्त रूप से भगवान सूर्य की स्तुति या भगवान सूर्य को नमस्कार है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में सूर्य को भगवान कहा जाता है और वे सुबह-सुबह भगवान सूर्य को जल और फूल अर्पित करना पसंद करते हैं। यह संस्कार सदियों से हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य नमस्कार का आविष्कार औंध के राजा (अब महाभारत का एक हिस्सा) ने किया था |
Asanas and Mantras in Sun Salutation
Surya namaskaar is a sequence of 8 asanas woven into sequence of 12 steps.The Asanas are as under :-
1.Tadasana with Anjali Mudra
2. Urdhva Hastasana
3. Utthanasana
4. Anjaneyasana
5. Kumbhakasana
6. Chaturanga Dandasana
7. Urdva Mukha Swanasana
8. Adho Mukha Swanasana
Last four are same as first four but practiced from other hand side.
सूर्य नमस्कार में आसन और मंत्र
सूर्य नमस्कार 12 चरणों में बुने गए 8 आसनों का एक क्रम है।
आसन इस प्रकार हैं: -
1. ताड़ासना, अंजलि मुद्रा के साथ
२.उर्धव हस्तसाना
3. उत्तानासन
4. अंजनायासन
5. कुंभकासन
6. चतुरंगा दंडासन
7. उर्ध्व मुख स्वानासन
8. अधो मुख स्वानासन
पिछले चार पहले चार के समान हैं लेकिन दूसरी ओर से अभ्यास किया जाता है।
Every asana is linked with a mantra which is recited alongwith every asana. The 12 Mantras are as under :-
1. Aum Mitray Namah -Salute to friendly one.
2. Aum Ravaye Namah - Salute to Shiny one
3. Aum suryay Namah - Salute to Sun
4. Aum Bhanve Namah - Salute to Bright one
5. Aum Khagay Namah - Salute to God which is roaming like a bird
6. Aun Pushne Namah - Salute to God who is naurishing us.
7. Aum Harinyagarbhaye Namah - Salute to God with Golden heart.
8. Aum Marichaye Namah -Salute to the giver of light.
9. Aum Adityaya Namah - Salute to the Son of Aditi.
10. Aum Savitre Namah - Salute to the God who is responsible for life.
11. Aum Arkaya Namah -Salute to the God who is worthy of glory.
12. Aum Bhaskaraya Namah - Salute to the God with cosmic illusion.
हर आसन को एक मंत्र के साथ जोड़ा जाता है जिसे हर आसन के साथ सुनाया जाता है।
12 मंत्र इस प्रकार हैं: -
1. ओम् मित्रये नमः- मित्र को नमस्कार।
2. ओम् रवये नमः - चमकने वाले को नमस्कार
3. ओम् सूर्याय नमः - सूर्य को नमस्कार
4. ओम् भानवे नमः - उज्ज्वल को प्रणाम
5. ओम् खगाय नमः - भगवान को प्रणाम जो एक पक्षी की तरह घूम रहा है
6. ऊँ पुष्णे नमः - ईश्वर को प्रणाम जो हमारा पोषण कर रहे हैं।
7. ओम् हरिन्यगर्भाय नमः - स्वर्ण ह्रदय वाले भगवान को प्रणाम।
8. ओम् मरिचये नमः -प्रकाश को देने वाले को प्रणाम
9. ओम् आदित्याय नमः - अदिति के पुत्र को प्रणाम।
10. ओम् सवित्रे नमः - जीवन के लिए जिम्मेदार भगवान को प्रणाम।
11. ओम् अर्काय नमः-भगवान को नमस्कार जो महिमा के योग्य हो।
12. ओम् भास्कराय नमः - ब्रह्माण्डीय ऊर्जा वाले भगवान को नमस्कार।
Benifits of Sun Salutation or Surya Namaskaar
1. Increase in Flexibility.
2. Increase in inner power of body.
3. Increase in energy.
4. Increase in physical strength.
5. Increase in apetite.
6. Increase in digestion.
7. Increase in sexual power.
8. Good for eys sight.
9. Useful for stomach ailments.
10. Balance both sides of the body.
11. Stimulates the manipur Chakra.
सूर्य नमस्कार का लाभ
1.शारीरिक लचीलेपन में वृद्धि।
2. शरीर की आंतरिक शक्ति में वृद्धि।
3. ऊर्जा में वृद्धि।
4. शारीरिक शक्ति में वृद्धि।
5. भूख में वृद्धि।
6. पाचन में वृद्धि।
7. यौन शक्ति में वृद्धि।
8. यह दृष्टि के लिए अच्छा है।
9. पेट की बीमारियों के लिए उपयोगी।
10. शरीर के दोनों तरफ का संतुलन।
11. मणिपुर चक्र को उत्तेजित करता है।
अन्य पढ़ें
अन्य पढ़ें
शुद्ध शिलाजीत कि पहचान कैसे करें || How to identify original Shilajit
1.
![]() |
Photo by Mareefe from Pexels Shilajit dissolves in water but does not dissolves in alcohol. शिलाजीत पानी में घुल जाती है और दारू में नही घुलती 2. |
![]() |
Photo by Elijah O'Donnell from Pexels Shilajit is bitter and astringent when tasted,dissloves in mouth completely without leaving any residue. शिलाजीत स्वाद में कड़वी और कसैली होती है और मुँह में बिना कोई अवषेश छोड़े घुल जाती है | 3. |
Shilajit changes its shape and state as per room temperature. शिलाजीत तापमान के मुताबिक आकार और अवस्था बदलती है| |
4.
Shilajit risen up like a mountain during burning and does not give any smoke. शिलाजीत जलाने पर धूआँ नहीं देती और पहाड़ कि तरह ऊपर कि ओर उठती है | |
10 प्रकार कि बिमारियाँ ठीक कर सकता है यह पौधा || Ratanjot Ke Fayade || Ratanjot Ke Labh
रत्नजोत | ratanjot
स्थानीय नाम
रत्नजोत ,बैम्वलम्बपटै (तमिल ), अल्कानेट (अंग्रेजी )
वानस्पतिक नाम
अलकन्ना तिनकोरिया
रत्नजोत कि पहचान
1. ऱत्नजोत में तुरही के आकार के नीले या बैंगनी फूल लगते हैं |
2. यह पौधा 0.3 से 0.6 मीटर तक लम्बा हो सकता है |
3. पौधे के पत्तों पर छिटपुट सफेद बाल होते हैं |
4. इस पौधे में जून से जुलाई तक फूल लगते हैं |
5. रत्नजोत कि जड़ से लाल रंग का पदार्थ निकलता है जो दवाईयों से लेकर ,अन्य कई कामों में लिया जाता है |
प्रयोग
1. रत्नजोत को खाने व पीने कि चीजों को रंग देने के काम लिया जाता है |
2. दवाईयों ,तेलों और शराब में रत्नजोत को काम में लिया जाता है |
3. कपड़े रंगने में भी रत्नजोत काम आती है |
4. सफेद बाल,चमड़ी ,हृदय तथा पत्थरी रोग में भी रत्नजोत को काम में लिया जाता है |
5. रत्नजोत हड्डियों और मासपेशियों को मजबूती देती है |
अन्य पढ़ें